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Monday, August 20, 2018

हर वक़्त तसव्वुर में मदीने की गली हो

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नात सरीफ ।   

हर वक़्त तसव्वुर में है मदीने गली नात 







> हर वक़्त तसबुर में मदीने की गली है 
> अब दर बादरी है न गरीबुल वतनी है
> इस सहेर में बिक जाते है खुद आके खरीदार
> यह मिश्र का बाजार नहीं सहेरे नबी है
> यह नाज यह अंदाज हमारे नहीं होते   ,,,,,3
> झोली में अगर टुकड़े तुम्हारे नहीं होते,,,,,,3
> मिलती ना अगर भिक हुजूर आप के दर से 
> इस ठाट से मंगतो के गुजारे नहीं होते
> बेटा मोहिब इक चाहिए बाजारे नबी। 
> इस शान के सौदे में खसारे नहीं होते      
> हम जैसे निक्कमो को गले कौन लगाता   
> सरकार अगर आप हमारे नहीं होते।      
> वह चाहे बुला ले जिसे यह उन का करम है 
> बे इजन मदीने के नज़ारे नहीं होते।    
> गए जिब्राइल दरे नबी के पयामे रब 
> लियें बा ख़ुशी 
> वही सोचा ठहर के इक पल 
> कही निंद में ना पड़े खलल 
> की हवा पारो से हुजूर को यूं जगा रहे थे 
> वह नूर को 
> फिर अदब से तलवो को चूम कर
> कहा जिब्राइल ने यह झूम कर देखो यह  
> शान है कमली वाले की।         
> यह मौजिजा भी मेरे नबी ने दिखा दिया 
> मिटटी के कँकारों को  भी कलमा पड़ दिया 
> चमका के पथ्थरों को नगीना बना दिया 
> जंगल को मुस्कुरा के मदिना बना दिया 
> यह शान है कमली वाले की

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